" प्रीत "
दे रही हूं तुम्हें प्रीत की वंदना,
बांध प्रेम - डोर साध मन की साधना।
चंचल, चपल नयन न्यारे,
मिश्री से मीठे बोल तुम्हारे।
गौर वर्ण पर तीक्ष्ण नक्श,
रसीला कहने आतुर सुराहीदार कंठ।
कद - काठी सादी धारी पर,
कलम उतारे बुद्धिशाली हस्त- लेखन।
मृगनयनी से नयन लिए हो,
उस पर मृगतृष्णा और गति मृग- सी ।
सब खातिर भरा हृदय विशाल,
पीड़ा सब संग सह- सह करके,
शब्दों से दे आधी पीर निकाल।
तुम संग रंग में रंग - रंग हम भी,
प्रीत की प्रीत से ओतप्रोत हैं|
प्रीत की प्रीत से अभिभूत हैं।
" श्री " (रानी सोलंकी) देवास मध्यप्रदेश
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