Wednesday, May 14, 2025

" प्रीत "

 " प्रीत "       


          

दे रही हूं तुम्हें प्रीत की वंदना,

बांध प्रेम - डोर साध मन की साधना।

चंचल, चपल नयन न्यारे,

मिश्री से मीठे बोल तुम्हारे।

गौर वर्ण पर तीक्ष्ण नक्श,

रसीला कहने आतुर सुराहीदार कंठ।

कद - काठी सादी धारी पर,

कलम उतारे बुद्धिशाली हस्त- लेखन।

मृगनयनी से नयन लिए हो,

उस पर मृगतृष्णा और गति मृग- सी ।

सब खातिर भरा हृदय विशाल,

पीड़ा सब संग सह- सह करके,

शब्दों से दे आधी पीर निकाल।

तुम संग रंग में रंग - रंग हम भी,

 प्रीत की प्रीत से ओतप्रोत हैं|

प्रीत की प्रीत से अभिभूत हैं।

           "  श्री " (रानी सोलंकी) देवास मध्यप्रदेश 

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